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Friday, April 10, 2009

न देख बुरा, न सुन बुरा, न बोल बुरा

न देख बुरा, न सुन बुरा, न बोल बुरा

अफ़सोस है अभी तक किसी ने गांधी फॉर डमीज किताब नहीं लिखी है, जैसे कि आइन्स्टाईन फॉर ड्मीज़ और फ़्रायड फॉर डमीज़ पुस्तकें हैं, इनमें दुनिया की इन महान हस्तियों के बारे में, बड़े ही सरल ढंग से, उनके सिधान्तों और किस क्षेत्र में उनका क्या योगदान है इसका उल्लेख़ मिलता है.

जैसे कि गांधी जी के बारे में कहें तो, उनका अहिंसा का सिद्धांत, सादा जीवन उच्च विचार,सच्चाई का मार्ग अपनाओ, स्वदेश प्रेम, जिससे पर्यावरण पर ज्यादा दबाब न पड़े और भी एक से एक उपयोगी बातें.

लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि गांधी जी के उसूल अब पुराने हो गये हैं, नये ज़माने की नई टेकनालजी के साथ मेल नहीं खाते, परन्तु अब जबकि हिंसा और अत्याचार तेज़ी से बढ़ रहे है और मानसिक तनाव में आकर लोग बेगुनाह लोगों पर गोली पर चलाते हैं, ऐसे समय में गांधी जी के सिधान्तों का महत्त्व और भी बढ़ गया है.

उनका एक सिद्धांत जो उन्होंने बड़े ही दिलचस्प ढंग से तीन बंदरों के माध्यम से दिया है " न देख बुरा, न सुन बुरा, न बोल बुरा" इसके पीछे उनका इरादा इंसानियत को और बढाने का था. लेकिन आजकल आई.टी के ज़माने में जब दुनिया के चप्पे-चप्पे पर ,ज़िन्दगी के हर पल पर मीडिया छाया हुआ है,हर छोटे बङे के पास सेल फ़ोन,ब्लैक बेरी, यू ट्यूब,फ़ेस बुक,और टुईटर्स जैसे साधन हैं, इनफ़ारमेशन की गंगा नही समुन्दर बह रहा है,ऐसे माहौल में, गान्धी जी के इस आदर्श न देख बुरा,न सुन बुरा,न बोल बुरा को अपनाना कितना कठिन है. हां ऐसे भी तमाम लोग है वो न्यूज़ के इतने भूख़े हैं कि अफ़वाह भी उनके लिये न्यूज़ है.और हां, पुराने ज़माने की एक कहावत कुछ तो सच नज़र आती है कि दीवारों के भी कान होते है क्योंकि हम भले ही सेल फ़ोन पर बात करें लोग उसे सुन सकते है. जी हां कुछ भी प्राईवेट नहीं है.