Wednesday, April 1, 2009

साँप सीढी का खेल

कहा जाता है बचपन के दिन सबसे अच्छे होतें हैं पढाई लिखाई खेल कूद और मस्ती. पर इन दिनों जबकि हमारे चारों ओर ही नहीं, पूरे विश्व पर छाए आर्थिक संकट और महंगाई की ही बातें होती हैं, मौज मस्ती भरे दिन लगता है कहीं दूर चले गए हैं,जिसे देखों बैंकों और बड़े बड़े निगमों की बातें करता है लोगों के चेहरे पर घबडाहट बेबसी और उदासी की झलक नज़र आती है.
बैंकों के संकट अगर अपने ही देश तक सीमित हो तो एक अलग बात हो, आईस लैंड की सरकार उसके यहां के बैंकों के फ़ैल होने से गिरी हैं लाटविया भी इसी ओर है और हंगरी इस संकट के कगार पर है. संचार माध्यमों में ऐ.आई जी,और बड़े बड़े कारपोरेशन के सीओज़ की तन्खाओं की ही बातें होती है तो बैंकों के खातों के कुछ और राज़ खोले जाते हैं .सेंक्रामेंटो जैसा ख़ूबसूरत शहर तम्बुओं का बसेरा बन गया है बैंको ने जिनके घर ले लिये हैं वो बेचारे जायें तो कहां जायें.

ऐसे में बचपन में खेले सांप सीढी की बङी याद आती है, इस खेल का कमाल है, इसमें जितनी सीढियां हैं उतने ही सांप फिर भी खेल में शामिल हर कोई ये मानता है की वोह अपने हाथ के कमाल से बाज़ी जीत सकता है. लेकिन अब ऐसा लगता है की आजकल दो क़िस्म की सांप सीढियां हैं एक सामान्य लोगों के लिये जिसमें सीढियां कम है और सांप ज्यादा और बैंको के लिए सीढियां ज्यादा और सांप कम. इसीलिये आर्थिक संकट से थके हारे लोगों को वो पुरानी सांप सीढी का इंतज़ार है कि काश कोई लौटा दे उनके बीते हुये दिन.

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